जीवन के बहुमूल्य क्षणों को यूं ही बर्बाद न करें
अगर हमें जीवन से प्रेम है तो समय को व्यर्थ नष्ट करने से बचना चाहिए। मृत्यु शैय्या पर पड़े एक विचारशील व्यक्ति ने अपने जीवन के व्यर्थ चले जाने पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा था कि मैंने जीवन में समय को नष्ट किया। अब समय मुझे नष्ट कर रहा है।
खोई दौलत फिर कमाई जा सकती है। भूली हुई विद्या फिर याद की जा सकती है। खोया स्वास्थ्य हासिल किया जा सकता है पर खोया हुआ समय कभी नहीं लौटता। उसके लिए केवल पश्चाताप ही रह जाता है। जिस प्रकार धन के बदले में अभीष्ट वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं, उसी प्रकार समय के बदले विद्या, बुद्धि, लक्ष्मी, कीर्ति, आरोग्य, सुख, शांति व मुक्ति जो भी वस्तु रुचिकर हो खरीदी जा सकती है। ईश्वर ने समय रूपी प्रचुर धन देकर मनुष्य को पृथ्वी पर भेजा है और निर्देश दिया है कि इसके बदले संसार की जो वस्तु रुचिकर समझें खरीद लें। किंतु कितने व्यक्ति हैं जो समय का मूल्य समझते हुए इसका सदुपयोग करते हैं। अधिकांश लोग आलस्य और प्रमाद में पड़े हुए जीवन के बहुमूल्य क्षणों को यूं ही बर्बाद कर देते हैं। एक-एक दिन कर ऐसे ही आयु बीत जाती है और अंतिम समय में पता चलता है कि उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। अपनी जिंदगी यूं ही बिता दिया। इसके विपरीत जो जानते हैं कि समय का नाम ही जीवन है वे एक-एक क्षण कीमती मोती की तरह खर्च करते हैं और उसके बदले बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। हर बुद्धिमान व्यक्ति ने अपने जीवन के क्षणों को व्यर्थ में बर्बाद नहीं होने दिया। अपनी समझ के अनुसार समय का सदुपयोग किया। अंततः समय ने उसे इस स्थिति पर पहुंचा दिया, जहां उसकी आत्मा संतोष का अनुभव करे।
यदि मनुष्य प्रतिदिन एक घंटा समय लगाया करे तो वह कुछ ही दिनों में महत्त्वपूर्ण कार्य पूरे कर सकता है। एक घंटे में 20 पृष्ठ पढ़ने से महीने में 600 पृष्ठ और साल में करीब 8000 पन्ने पढ़े जा सकते हैं। यह क्रम अगर दस वर्ष तक जारी रहे तो लगभग 1 लाख पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं। इतने पृष्ठों में कई सौ ग्रंथ हो सकते हैं।
यदि वे एक ही विषय के हों तो वह व्यक्ति उस विषय का विशेषज्ञ बन सकता है। एक घंटा प्रतिदिन कोई व्यक्ति विदेशी भाषाएं सीखने में लगाए तो यह तीन वर्ष में दुनिया की सब भाषाओं का ज्ञाता बन सकता है। कोई व्यक्ति एक घंटा प्रतिदिन व्यायाम करे तो अपने आयु को पंद्रह वर्ष बढ़ा सकता है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के प्रख्यात गणितज्ञ आचार्य चार्ल्स फास्ट ने प्रतिदिन एक घंटा गणित सीखने का नियम बनाया था और उस नियम पर अंत तक डटे रहकर इतनी प्रवीणता हासिल की। ईश्वरचंद विद्यासागर समय के बड़े पाबंद थे। जब वे कॉलेज जाते तो रास्ते में दुकानदार उन्हें देखकर अपनी घड़ियां ठीक करते थे। वे जानते थे कि विद्यासागर कभी एक मिनट भी आगे पीछे नहीं चलते। एक विद्वान ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था। कृपया बेकार मत बैठिए । यहां पधारने की कृपा की है तो मेरे काम में कुछ मदद कीजिए। साधारण मनुष्य जिस समय को बेकार की बातों में खर्च करते रहते हैं, उसे विवेकशील लोग किसी उपयोगी कार्य में लगाते हैं। यही आदत है जो सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को भी सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचा देती है माजार्ट ने हर घड़ी उपयोगी कार्य में लगे रहना अपने जीवन का आदर्श बना लिया था। वह मृत्यु शैय्या पर पड़े रहकर भी कुछ करते रहे। रैक्यूम नामक प्रसिद्ध ग्रंथ उन्होंने मौत से लड़ते-लड़ते पूरा किया। उनका कहना था कि मैं नित्य ही किसी न किसी प्रकार अपने साहित्यिक कार्यों के लिए निकाल लेता हूँ। बस थोड़े से नियमित समय ने ही मुझे हजारों पुस्तकें पढ़ने और साठ ग्रंथों के प्रणयन का अवसर दिया हर उन्नतिशील और बुद्धिमान मनुष्य की मूलभूत विशेषताओं में एक विशेषता अवश्य होती है। वह है समय का सदुपयोग जिसने इस तथ्य को समझा और उसे कार्य रूप में उतारा, उसने ही यहाँ आकर कुछ प्राप्त किया। अन्यथा तुच्छ कार्यों में आलस्य और उपेक्षा के साथ दिन काटने वाले लोग किसी प्रकार सांसें तो पूरी कर लेते हैं पर उस लाभ से वंचित रह जाते है, जो मानव जीवन जैसी बहुमूल्य वस्तु प्राप्त होने पर उपलब्ध हो सकती थी।
कर्मवीर धुरंधर